Thursday 3 March 2016

जिंदगी में जगमगाते पांच किरदार



रिजल्ट के दबाव में हताश स्कूली बच्चे खुदकुशी कर रहे हैं। हमारे आसपास ऐसे कई लोग हैं, जो फेल हुए, नंबर कम आए। खराब रिजल्ट के उन पलों में खुद को संभाल नहीं पाए। खुदकुशी की कोशिश की। मगर किसी न किसी तरह वह पल बीत गया। वे नई जिंदगी में वापस आए। फिर अच्छे रिजल्ट भी आए। खुद को साबित करने के मौके भी। दैनिक भास्कर के साथ पहली बार अपनी आपबीती शेयर करने के लिए तैयार हुए एक समय जिंदगी से हार मानने वाले ऐसे की पांच किरदार, जिन्होंने जिद से अपनी जिंदगी बदली।

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1. चाैथी मंजिल से कूदने को थी, शुक्र है जिंदा हूं, अब पढ़ रही हूं...
आफरीन खान, 21 साल, आरजीपीवी में इंजीनियरिंग अंतिम सेमेस्टर की छात्रा।



छठे सेमेस्टर का रिजल्ट खराब आया। उसे एक पेपर में अनुपस्थित बताया गया था। कॉलेज में कोई मानने को तैयार नहीं था। वह इतनी हताशा में आ गई कि एक फैसला ले लिया। यह 12 अगस्त 2015 की बात है। मत्स्य विभाग में कार्यरत मंसूर खान और स्कूल टीचर कमर खान की बेटी आफरीन छत से कूदकर जान देने की कोशिश की। चौथी मंजिल से छलांग लगा रही थी। तभी पड़ोस की एक महिला की नजर उस पर पड़ी। उसे बचा लिया गया। वह कहती है- तब दिमाग में केवल नकारात्मक ख्याल आ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे लिए सारे दरवाजे बंद हो गए हैं। मेरी पढ़ाई बेकार गई। खुद को खत्म करना ही मुनासिब लगा। घटना के डेढ़ महीने बाद घर से पहली बार अकेले बाहर निकली। अब मुझे अकेला नहीं छोड़ा जा रहा था। फिर कुछ पॉजिटिव और एक मुकाम तक पहुंच चुके लोगों से मिली। समझ आया कि केवल नंबरों के पीछे भागना समझदारी नहीं है। बस तभी से सोच बदल ली। अब संगीत सुनती हूं। कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लेती हूं। मेरी मां मेरे लिए रोल मॉडल हैं। उन्होंने ही मुझे संभाला।
सुसाइड की खबरों पर वे कहती हैं-अपनी गलती का अहसास होता है। ऐसे बच्चे अपने परिवार को दुख देकर चले जाते हैं। परिवार के बारे में कोई नहीं सोचता। हमें उनके बारे में ख्याल करना होगा। हर बच्चा पहली पोजीशन नहीं पा सकता। आगे बढ़ने के लिए कई पॉजिटिव ऑप्शन हैं। खुद पर भरोसा करें।
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2. मैथ्स में ग्रेस से पास हुई, लगा सब खत्म हो गया
अनुपमा महेश्वरी, 42 साल, जानी-मानी करियर काउंसलर,

 पति अभय महेश्वरी फाइनेंस प्लानर, वैल्थ कंसल्टेंट हैं। उनकी हाॅबी है होम डेकोरेशन, मोटीवेशनल वीडियो और मूवी देखना। वे पढ़ने में शुरू से मेधावी थीं। हमेशा फ़र्स्ट डिवीजन। दसवीं के बाद पीसीएम ले लिया। मैथ्स में नंबर कम आने लगे। स्कूल और घर में एक ही बात होती कि पढ़ने में कमजोर हूं। कांफिडेंस लेबल इतना गिर गया कि परीक्षा देते समय सब कुछ भूल गई। ग्यारहवीं में सप्लीमेंट्री आई। जैसे-तैसे पास हुई, 12 वीं कक्षा में पहुंची। यहां रिजल्ट आया तो मैथ्स में ग्रेस मिला। तब लगा अब सब खत्म हो गया। इतने निगेटिव विचार आए एक क्षण को लगा कि जीवन ही खत्म कर देना चाहिए। माता-पिता ने कम नंबर लाने पर कोई ताना नहीं दिया इसलिए ग्लानि और बढ़ गई। कोई कदम उठाती उसी वक्त एक मैगजीन में करियर काउंसलर उषा अलबूक्वैरक्यू का लेख पढ़ा। उनसे मिली। उन्होंने काउंसलिंग की । उन्होंने बताया मैंने गलत विषय चुना है। यदि मैं आर्ट के विषय लेती तो अच्छा स्कोर करती। बस ग्रेजुएशन में विषय बदल लिया। काॅलेज में टॉप किया। करियर काउंसलिंग में पीएचडी की। अब बच्चों को करियर चुनने में मदद करती हूं। मगर खुद को खत्म करने वाले उसे भयावह पल की वह याद किसी से अब तक शेयर नहीं की। आज इसलिए हिम्मत की ताकि बता सकूं की पास-फेल होना मेटर नहीं करता। बच्चे वह चुनें जिसमें उन्हें खुशी मिलती हो।
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3. फांसी लगाने वाली थी पापा को लगा कुछ गड़बड़ है और फिर...
सिंधु धौलपुर, 30 साल, रंगमंच कलाकार।

पिता राजाराम धौलपुर हेल्थ अफसर हैं। दो भाई बैंक में। जानीमानी थिएटर कलाकार। एडमायर सोसायटी फॉर थियेटर कल्चरल एंड वेलफेयर समिति की डायरेक्टर। सिंधु ने 12वीं ही नहीं ग्रेजुएशन भी फ़र्स्ट डिवीजन में पास हुई। इसके बाद मनोविज्ञान विषय में पीजी का प्रीवियस में भी मार्क अच्छे आए। फाइनल का पेपर देते समय बीमार हो गई। पेपर बिगड़ गया। उम्मीद थी कि 60 प्रतिशत बन ही जाएंगे। जब रिजल्ट आया तो नोटिस बोर्ड में रोल नंबर ही नहीं था। लगा दो साल की मेहनत बर्बाद हो गई। कई दिनों तक घर में किसी को नहीं बताया कि फेल हो गई। अकेले कमरे में बंद रहती। खाना पीना भी बंद कर दिया। एक दिन सोचा फांसी लगा लूं। उसी समय न जाने क्यों पिताजी को लगा कि कुछ गड़बड़ है। उन्होंने बुलाया और पूछा क्या हुआ। मेरे मन में जैसे गुबार फूट गया। उन्हें सारी बात बता दी। अपने मन में आए उस ख्याल को भी। पापा बोले- जिंदगी यही खत्म नहीं होती। कॉपी रीचेक कराओ। तब पता चला कि एक विषय की कापी चेक नहीं हुई थी। पास तो हो गई लेकिन वह डिवीजन नहीं बना जो चाह रहे थे। फिर पिताजी की सलाह पर करियर बनाने के दूसरे ऑप्शन के विषय में सोचा। रंगमंच पर आई। लगा कि यही तो वह था जाे मैं सबसे बेहतर कर सकती थी।
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4. फेल देखकर मैं क्या करने वाली थी, जब कॉपी रीचेक हुई तो...
दिशा जैन, 28 साल, माध्यमिक शिक्षा मंडल की हेल्प लाइन में काउंसलर। क्लासिकल म्यूजिक सुनती हैं। लतीफे शेयर करती हैं। 

कारोबारी परिवार की दिशा के घर में चार बहन एक भाई थे। सब पढ़ने में अव्वल। पिता की ख्वाहिश थी कि बच्चे पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो जाए। दिशा ने बीए फ़र्स्ट और सेकंड ईयर में क्लास में टॉप किया था। फाइनल ईयर में अंग्रेजी में फेल हो गई। रिजल्ट देखकर लगा जैसे करंट लग गया।शाम होने तक कॉलेज में रही। मैं इस बात को स्वीकार ही नहीं कर पा रही थी कि मैं फेल भी हो सकती हूं। मैं बेचैनी से घूमते हुए कॉलेज की छत की ओर जा रही थी कि एक टीचर ने टोका तो सकपका गई। बात को टालकर तेजी से नीच आई गई। टीचर की नजर बचाकर यह सोचते हुए एक बार ऊपर चढ़ ही रही थी कि अब नहीं जीना। घर वालों से क्या कहूंगी। टीचर ने भांप लिया। उन्होंने पूछा क्या बात है-तुम्हारा व्यवहार बदल हुआ लग रहा । उन्होंने बड़े स्नेह से सिर पर हाथ रखा तो में फूटकर रो पड़ी। पूरी बात बताई। उन्होंने समझाया- इसमें रोने वाली बात कहां है। काॅपी चेक करवा लो। रिवेल्युएशन कराया। जिसमें न केवल नंबर बढ़े बल्कि डिवीजन बना। टीचर ने मेरी मनोदशा नहीं पहचानी होती तो आज में इस दुनिया में ही नहीं होती। अब सबको अपना उदाहरण देते हुए बताती हूं कि कोई भी निर्णय भावुकता में न ले।
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5. फंदा तैयार था, मगर मंडेला की किताब को देखा और दृष्टि बदल गई
राजेश कुमार पटेल, 26 साल,  इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद सिविल सर्विस की तैयारी में।

 पिता कुंजलाल किसान हैं। मां संतोषिया देवी गृहणी हैं। घर के इकलौते बेटे राजेश ने वर्ष 2014 में जान देने की कोशिश की थी। कॉलेज में 75 फीसदी से ज्यादा अंक रहते थे। एमपीपीएससी-2013 का परिणाम आया तो सिलेक्ट नहीं हुए। उस नाकामी को सहन नहीं कर पाए। वे कहते हैं-मैंने रस्सी तैयार कर ली थी। टेबल पर  नेलसन मंडेला की एक किताब ए लॉंग वॉक टू फ्रीडम पर नजर गई। उसे पलटने लगा। मंडेला 29 साल तक जेल में रहे थे। उन जैसे विकट हालात तो मेरे नहीं थे। एक पल में मरने का ख्याल बाहर हो गया। मगर मुझे सहारा देने वाला कोई नहीं था। बूढ़े मां-बाप हैं, जो नहीं जानते कि इस हालात में बच्चे को क्या समझाएं। मैंने कोशिश में कोई कसर न छोड़ने की ठान ली, क्योंकि मैं यही कर सकता हूं। नेलसन मंडेला से बड़ा मेरा कोई रोल मॉडल नहीं। आज जब सुसाइड की खबरें सुनता हूं तो मुझे उन बच्चों के माता-पिता का ख्याल आता है। आपका एक गलत कदम उन्हें जिंदगी भर के लिए तकलीफ दे सकता है। इसलिए उस पल को जैसे भी हो टालिए। अपनी क्षमता को पहचानिए। खुदकुशी किसी परेशानी का हल नहीं। बड़ी कामयाबियां बड़ी नाकामियों के बाद आती हैं।

कालसर्प योग

ये विवरण आप अपने विवेक से पढ़ें। ये महाराष्ट्र की मेरी यात्राओं के अनुभव हैं। मैं त्रयम्बकेश्वर का जिक्र कर रहा हूं , जो जन्मकुंडली और ज...